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जन्मकुंडली से ज्यादा जरूरी है खून की जांच

जन्मकुंडली

जन्मकुंडली से ज्यादा जरूरी है खून की जांच: जन्मकुंडली से जादा जरुरी है रक्त परिक्षण जो शादी से पहले  कराना दोनों पक्षों के लिए हितकर है ताकि समय रहते आने वाले खतरों को टाला जा सके. Medical Check Up or Blood Test Before Marriage in India is New Trend.

ब्लड ग्रुप मिलान की बात एकदम नयी है और वाकई यह विवाहिक बंधन में बंधने के लिए अनोखा है.जन्मकुंडली का मिलान तो सभी कराते है लेकिन ब्लड टेस्ट की जाँच जरुरी नहीं समझी जाती|

आखिर ब्लड टेस्ट इतना क्यों जरुरी है इसका रहस्य जानने के लिए मैं गायनोकोलॉजिस्ट से मिली उनका मानना है, कि शादी से पहले लड़के-लड़की का ब्लड ग्रुप जान लेने से शादी के बाद कई तरह के संकटों से बचा जा सकता है. यह अच्छी बात होगी कि अगर लोगों में इसको लेकर जागरूकता आ जाए.जैसी जन्मकुंडली के मिलान की है|

शादी के बाद विवाहित जोड़ा एक नई जिंदगी में कदम रखता है. कई बार नयी जिंदगी शुरू होने के बाद परिवार नियोजन के दौरान ब्लड ग्रुप को लेकर कई तरह की परेशानियां आती हैं.

आजकल तो यौन संबंध के अलावा भी कई और कारणों से एचआईवी और हेपेटाइटिस-बी के संक्रमण वालों की संख्या भी हमारे समाज में बढ़ रही है. इसी के साथ कई महिलाएं और पुरुष भी यौन रोगों से पीड़ित होते जा रहे हैं. ऐसे में शादी से पहले दोनों पक्षों के लिए खून की विशेष जांच जरूरी हो जाती है. जिससे कोई भी पक्ष अपने आप को ठगा महसूस ना करें और ना ही उन्हें बाद में कोई पछतावा हो.

आर एच फैक्टर क्या होता है – What is RH Factor in hindi

आरएच फैक्टर (RH Factor) के कारण ही गर्भावस्था और प्रसव के दौरान कई तरह की समस्याएं आती हैं. हमारे खून में लाल कोशिकाएं कई श्रेणियों की होती हैं – जैसे A , B, O और AB. इसमें भी हम सबके खून में दो ग्रुप होते हैं – नेगेटिव और पॉजिटिव.

1940 में लैंडस्टीनर और विनर नाम के दो वैज्ञानिकों ने मानव रक्त कोशिकाओं में एंटीजन की उपस्थिति का पता लगाया. इस एंटीजन का पता पहले से ही रिसर्च मंकी यानी लाल मुंह के बंदरों में मिल चुका था. इन्हीं बंदरों के नाम पर इस एंटीजन का नाम रीसस पड़ा. रीसस यानी आर एच फैक्टर. जिनके खून में यह होता है उनका ब्लड ग्रुप पॉजिटिव कहलाता है और जिनमें यह नहीं होता वह खून नेगेटिव कहलाता है.

ज्यादातर लोगों के खून में रीसस यानी आरएच फैक्टर पाया जाता है. इसका मतलब अधिकांश लोग पॉजिटिव ब्लड ग्रुप वाले होते हैं. सिर्फ 5% लोगों के खून में एंटीजन यानी आरएच फैक्टर नहीं होता है. जिनके खून में यह फैक्टर नहीं होता उनका खून जाहिर है नेगेटिव ग्रुप का होता है.

गायनोकॉलोजिस्ट के अनुसार पति-पत्नी दोनों का ब्लड ग्रुप RH Negative हो या दोनों का RH Positive हो तो समस्या नहीं है. पति का RH Negative हो और पत्नी का पॉजिटिव हो तो भी समस्या नहीं है. समस्या तो तब होती है जब पति का RH Positive हो और पत्नी का RH Negative हो. इसकी वजह से जो परेशानी होती है, वह उनसे पैदा होने वाले बच्चों के लिए होती है.

इसका कारण यह है कि RH Negative ब्लड ग्रुप वाली मां के बच्चे का ब्लड ग्रुप नेगेटिव या पाजिटिव कुछ भी हो सकता है. अगर नेगेटिव हो तो यहां भी कोई समस्या पेश नहीं आती है, क्योंकि मां के खून से बच्चे का खून मिल जाता है. लेकिन अगर गर्भस्थ शिशु का ब्लड ग्रुप पॉजिटिव हो तो प्लेसेंटा यानी गर्भनाल के जरिए मासिक खून विनिमय के दौरान शिशु का RH Positive खून मां के RH Negative ग्रुप से मिलकर प्रतिक्रिया करता है. इस प्रतिक्रिया स्वरुप इम्यून एंटीबॉडी तैयार होती है.

गर्भस्थ शिशु को खतरा कब हो सकता है – When a fetus can be at risk of danger in hindi?

यह एंटीबॉडी अगर ज्यादा मात्रा में तैयार होती है तो गर्भस्थ शिशु के लिए यह खतरनाक भी हो सकता है. इससे खून में मौजूद हीमोग्लोबिन को नुकसान पहुंचता है और खून में बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ती जाती है. इससे गर्भस्थ शिशु को पीलिया हो सकता है. हमारे देश में गर्भस्थ शिशु में पीलिया के मामले अकसर देखने में आते हैं. गर्भस्थ शिशु के पीलिया के शिकार होने से कई मामलों में पाया जाता है कि गर्भ में ही बच्चे की मौत हो जाती है. अगर नहीं भी हो तो गर्भस्थ शिशु के दिमाग पर इसका बहुत असर पड़ता है.

हालांकि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में इसका हल है. पत्नी के RH Negative और पति के RH Positive होने से पहले बच्चे के जन्म के दौरान ऐसी कोई समस्या नहीं भी हो सकती है. लेकिन दूसरे बच्चे के जन्म में खतरा होने का अंदेशा रहता है. वैसे आरएच नेगेटिव ग्रुप वाली मां के बच्चे का ग्रुप अगर RH Positive हो तो प्रसव के 72 घंटे पहले मां को Anti-D (Rho) Immunoglobulin इंजेक्शन देने पर खतरा टल सकता है. RH Negative मां को हर प्रसव के समय यह देने से इस समस्या का हल हो जाता है.

वैसे ऐसे मां की गर्भ के 8-9 महीने में Indirect Antiglobulin (Coombs) Test के जरिए डॉक्टर जांच कर लेते हैं कि मां के शरीर में कोई एंटीबॉडी तैयार हो रही है या नहीं. अगर होती है तो 35 से 38 सप्ताह के बीच सिजेरियन या दूसरी किसी तरीके से प्रसव का इंतजाम किया जाता है.

पहले प्रसव के दौरान खतरा सिर्फ 30% होता है. इसका कारण यह है कि मां के RH Negative खून के साथ शिशु के RH Positive खून मिलकर एंटीबॉडी तैयार होने के लिए कम से कम 2 बार RH Positive कोस में मां के खून के संपर्क में आना जरुरी है. मां का शरीर पहली बार एंटीजन के संपर्क में आता है और इससे परिचित होता है.

लेकिन अगर पहले गर्भपात कराया जा चुका है, तो खतरे की पूरी आशंका होती है. सुकून की बात यह है कि चिकित्सा विज्ञान के अत्याधुनिक हो जाने के कारण ऐसी परिस्थिति का मुकाबला किया जा सकता है.

विशेषज्ञों का कहना है, कि आर एच फैक्टर के कारण होने वाली मौत की घटनाएं अब पहले के मुकाबले बहुत ही कम होती हैं. अगर होती भी है तो दूरदराज के गांव में जहां हेल्थ सेंटर नहीं होते और गर्भवती महिलाओं को दाई यानी हकीम की निगरानी में प्रसव कराया जाता है.

खून की जांच क्यों जरूरी है  Why is blood Test necessary in hindi

 बहरहाल, इन स्थितियों में शादी से पहले खून की जांच कराना बेहतर तरीका है, जिससे ऐसे मामलों में पहले से ही सावधान रहा जा सके. हालांकि डॉक्टर का यह भी कहना है कि RH नेगेटिव ग्रुप वाली महिला से किसी RH Positive पुरुष का रिश्ता करने में बहुत खतरा नहीं है, बशर्ते काबिल डॉक्टर की निगरानी में गर्भवती महिला की आरंभिक जांच से लेकर प्रसव तक कराया जाए.

इसीलिए आर एच फैक्टर की जांच के बाद रिश्ता तय करने के पहले थैलेसीमिया, एड्स, सिफलिस, हेपेटाइटिस, गनोरिया, ट्राकोमोनिएसिस आदि के लिए खून की जांच जरूर करानी चाहिए.

वैसे माइनर थैलेसीमिया से ग्रस्त महिला से भी वैवाहिक रिश्ता जोड़ा जा सकता है. अगर महिला मेजर थैलीसीमिया से ग्रस्त है तो ऐसा रिश्ता नही जोड़ना बेहतर है. क्योंकि ऐसे रिश्ते से होने वाले बच्चे के मेजर थैलेसीमिया होने का खतरा अधिक होता है. इसी तरह एड्स, सिफलिस, हेपिटाइटिस, गनोरिया, ट्राकोमोनिएसिस जैसे यौन रोगों से आने वाले बच्चे को बचाने के लिए खून की जांच जरूरी है, अक्सर ऐसी बीमारी का पता बहुत देर से चलता है. अगर खतरे का पता पहले से हो तो परिवार नियोजन की बेहतर तैयारी की जा सकती है.

अक्सर खून में हीमोफीलिया जैसी कई तरह की विसंगतियां पाई जाती हैं. इसलिए भी शादी का रिश्ता जोड़ने से पहले खून की जांच कराने की सलाह दी जाती है. वैसे ऐसे मामले में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में समाधान की गुंजाइश है, पर वह बहुत खर्चीला है.

बेहतर है, जांच के बाद रिश्ता जोड़ने या ना जोड़ने का निर्णय लिया जा सकता है. जैसा कि जन्मकुंडली के मिलान के बाद लिया जाता है. खून की जांच आने वाली पीढ़ी की सेहतमंद जिंदगी के लिए बेहद जरूरी है.

 

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