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मरास्मस रोग क्या है, लक्षण, कारण, इलाज और बचाव – What is Marasmus, Symptoms, Causes and Treatment in Hindi

Marasmus in Hindi मरास्मस रोग एक अत्यंत गंभीर कुपोषण संबंधी विकार है, जिसमें पीड़ित व्यक्ति के शरीर के ऊतकों, वसा और मांसपेशियों को नुकसान पहुंचता है। इस प्रकार का कुपोषण, शरीर को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व और कैलोरी न मिल पाने के कारण उत्पन्न होता है। अतः मरासमस का मुख्य कारण अपर्याप्त पोषण या भुखमरी हो सकती है। मरास्मस (Marasmus) रोग वयस्कों और बच्चों दोनों को हो सकता है, लेकिन छोटे बच्चों को अत्यधिक प्रभावित करता है तथा प्रारंभिक अवस्था में इसका निदान नहीं  किए जाने पर मृत्यु का कारण भी बन सकता है, अतः इसका इलाज और बचाव आवश्यक हो जाता है।

आज इस लेख के माध्यम से आप जानेंगे कि मरास्मस (मरासमस) रोग क्या है, इसके लक्षण, कारण, इलाज और बचाव के बारे में।

  1. मरासमस क्या है – What is Marasmus in Hindi
  2. मेरेस्मस रोग किस की कमी से होता है – Marasmus disease is caused by lack of in Hindi
  3. मरास्मस रोग के लक्षण – Marasmus Symptoms in Hindi
  4. मरास्मस के कारण – Marasmus Causes in Hindi
  5. मरास्मस के जोखिम कारक – Marasmus Risk factors in Hindi
  6. मरास्मस का निदान – Marasmus Diagnosis in Hindi
  7. मरास्मस का इलाज – Marasmus Treatments in Hindi
  8. मरास्मस की रोकथाम – Marasmus Prevention in Hindi

मरासमस क्या है – What is Marasmus in Hindi

मरासमस कुपोषण के कारण होने वाली एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है। यह रोग गंभीर रूप से कुपोषण का शिकार होने वाले किसी भी व्यक्ति को हो सकता है, लेकिन मरास्मस आमतौर पर बच्चों को ज्यादा  प्रभावित करता है। यह समस्या शरीर में वसा और मांसपेशियों की हानि का कारण बनती है, जिससे बच्चों का विकास उचित तरीके से नहीं हो पाता है। मरास्मस की समस्या विकासशील देशों में बहुत आम है, लेकिन  विकसित देशों में, यह भोजन संबंधी विकार एनोरेक्सिया नर्वोसा (anorexia nervosa) के परिणामस्वरूप हो सकता है। मरास्मस का इलाज संभव है, लेकिन इलाज न किए जाने पर यह स्थिति जानलेवा हो सकती है।

मेरेस्मस रोग किस की कमी से होता है – Marasmus disease is caused by lack of in Hindi

यह रोग उस स्थिति में होता है जब बच्चे के आहार में प्रोटीन की कमी होने के साथ ही ऊर्जा या कैलोरी की भी कमी होती है। मरास्मस, प्रोटीन-ऊर्जा संबंधी कुपोषण का एक गंभीर रूप है। जब किसी व्यक्ति को उचित पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं, तो शरीर की नियमित प्रक्रियाओं का सही तरीके से संचालन नहीं हो पाता है। जिससे नई कोशिकाओं के विकास में कठिनाई या रोग से लड़ने की क्षमता में कमी और अन्य अधिक गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

मरास्मस रोग के लक्षण – Marasmus Symptoms in Hindi

सूखा रोग या मरास्मस का मुख्य लक्षण कम वजन का होना है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति या बच्चे बहुत अधिक मांसपेशियों और चमड़ी के नीचे की वसा खो देते हैं। गंभीर रूप से कुपोषण का सिकार होने वाले बच्चे अधिक उम्र के दिखाई देते हैं और उनमें किसी भी कार्य को लेकर ऊर्जा या उत्साह की कमी होती है। मरास्मस (Marasmus) बच्चों के चिड़चिड़े स्वभाव का भी कारण बन सकता है।

इसके अतिरिक्त भी मरास्मस के अन्य सामान्य लक्षणों में निम्न को शामिल किया जा सकता है, जैसे:

  • असामान्य रूप से कम बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई)
  • बच्चों के विकास में कमी या धीमी वृद्धि
  • लगातार चक्कर आना
  • ऊर्जा की कमी
  • शुष्क या रूखी त्वचा
  • भंगुर बाल
  • कम वजन
  • खसरा
  • अत्याधिक कमजोरी
  • बार-बार संक्रमण इत्यादि।

मरास्मस (Marasmus) की संभावित जटिलताओं में निम्न को शामिल किया जा सकता है:

  • जोड़ों में विकृति उत्पन्न होना
  • स्थायी रूप से दृष्टि हानि
  • क्रॉनिक डायरिया (chronic diarrhea) की समस्या
  • श्वासनप्रणाली में संक्रमण होना
  • बौद्धिक विकलांगता उत्पन्न होना
  • अवरुद्ध विकास
  • अंग की विफलता
  • कोमा (Coma) इत्यादि।

मरास्मस के कारण – Marasmus Causes in Hindi

शरीर में पोषक तत्वों की कमी या कुपोषण समस्या मरास्मस का मुख्य कारण बनती है। यह रोग उन बच्चों में होता है, जो पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, कैलोरी, कार्बोहाइड्रेट और अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्वों का किसी भी रूप में सेवन नहीं कर पाते हैं। कुपोषण का शिकार होने वाले बच्चों में निम्न पोषक तत्वों की कमी से संबन्धित गंभीर समस्याएँ देखने को मिलती है, जैसे:

  • आयरन की कमी
  • आयोडीन की कमी
  • जिंक (जस्ता) की कमी
  • विटामिन ए की कमी, इत्यादि।

दूषित पानी के सेवन से भी मरास्मस होता है। आमतौर पर गरीबी (दरिद्रता) और भोजन की कमी की समस्या मरास्मस का कारण बनती है।

स्तनपान (breastfeeding) की विफलता के परिणामस्वरूप 1 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को मरास्मस होने का खतरा होता है। इसके अतिरिक्त मरास्मस आमतौर पर उन शिशुओं में विकसित होता है, जो समय से पहले पैदा होते हैं।

एक स्वास्थ्य समस्या, जो पोषक तत्वों को सही तरीके से अवशोषित या संसाधित करने में मुश्किल पैदा करती है, मरास्मस का कारण बन सकती है।

मरास्मस के जोखिम कारक – Marasmus Risk factors in Hindi

जिन क्षेत्रों या जगहों पर अकाल या गरीबी की उच्च दर पाई जाती है, वहाँ बच्चों को मरास्मस होने का खतरा अधिक होता है। कुपोषण के प्रभाव के कारण माताओं में पर्याप्त स्तन दूध का उत्पादन न हो पाने के कारण, उनके बच्चे भी कुपोषण से प्रभावित हो जाते हैं।

वायरल, बैक्टीरियल और परजीवी संक्रमण के साथ-साथ चिकित्सकीय देखभाल से वंचित क्षेत्रों में रहने वाले व्यक्तियों को भी मरास्मस होने का जोखिम अधिक होता है।

मरास्मस के इन सभी जोखिम कारकों के अलावा अन्य को भी शामिल किया जा सकता है, जैसे:

  • लम्बे समय तक भूखे रेहना (Chronic starvation)।
  • अशुद्ध या मिलावटी पानी (Adulterated water)।
  • अपर्याप्त भोजन का सेवन करना।
  • विटामिन की कमी, इत्यादि।

मरास्मस का निदान – Marasmus Diagnosis in Hindi

डॉक्टर अक्सर शारीरिक परीक्षण के माध्यम से मरास्मस का प्रारंभिक निदान कर सकते हैं। मरीज की शारीरिक माप, जैसे- ऊंचाई और वजन, मरास्मस की स्थिति का निर्धारण करने में मदद कर सकती हैं। अतः किसी विशेष आयु के स्वस्थ बच्चों की अपेक्षा कम शारीरिक माप वाले बच्चे मरास्मस का शिकार हो सकते हैं।

कुपोषित बच्चे में गतिशीलता की कमी भी मरास्मस के निदान की पुष्टि करने में मदद कर सकती है। इस स्थिति वाले बच्चों में किसी भी कार्य को करने में इच्छा और ऊर्जा की कमी होती है।

रक्त परीक्षण का उपयोग करके मरास्मस का निदान करना मुश्किल हो सकता है। क्योंकि कुछ बच्चों में मरास्मस के साथ साथ संक्रमण की स्थिति भी हो सकती है, जिससे रक्त परीक्षण के परिणाम प्रभावित हो सकते हैं।

अतः मरास्मस की स्थिति का निदान करने के लिए डॉक्टर प्रयोगशाला परीक्षण के तहत निम्नलिखित परीक्षणों की सिफ़ारिश कर सकता है, जैसे:

  • रक्त शर्करा का स्तर
  • हीमोग्लोबिन का स्तर
  • मूत्र-विश्लेषण (Urinalysis)
  • मल परीक्षण (Stool tests)
  • इलेक्ट्रोलाइट परीक्षण, इत्यादि।

मरास्मस का इलाज – Marasmus Treatments in Hindi

मरास्मस (Marasmus) एक चिकित्सा आपातकालीन स्थिति है। अतः लक्षण दिखाई देते ही व्यक्ति को तुरंत उपचार सहायता प्राप्त करने की आवश्यकता होती है। मरास्मस से पीड़ित बच्चों के प्रारंभिक उपचार के लिए अक्सर उबला हुआ पानी के साथ स्किम मिल्क पाउडर के मिश्रण का सेवन कराने की सलाह दी जाती है। बाद में इस मिश्रण में वनस्पति तेल (जैसे तिल का तेल), कैसिइन (casein) और चीनी को भी शामिल किया जा सकता है। कैसिइन एक प्रकार का दूध प्रोटीन है तथा तेल मिश्रण की ऊर्जा सामग्री को बढ़ाता है।

मरास्मस की स्थिति से पीड़ित व्यक्ति को उपचार के दौरान अधिक संतुलित आहार का सेवन करना चाहिए, जिससे कि पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा सके। अतः पोषण की कमी को पूरा करने  के लिए डॉक्टर सप्लीमेंट की सिफ़ारिश कर सकता है।

यदि पीड़ित व्यक्ति को अत्याधिक दस्त के कारण निर्जलीकरण (dehydration) की समस्या उत्पन्न होती है, तो पुनर्जलीकरण (Rehydration) जरूरी होता है। पुनर्जलीकरण के लिए बच्चे को नसों के माध्यम से (intravenously) तरल पदार्थ देने की जरूरत नहीं होती है। बच्चों के लिए ओरल हाइड्रेशन (Oral hydration) ही पर्याप्त हो सकता है।

मरास्मस वाले बच्चों में संक्रमण की समस्या उत्पन्न होना आम है, इसलिए संक्रमण की स्थिति में एंटीबायोटिक्स या अन्य दवाओं के माध्यम से उपचार किया जा सकता है।

मरास्मस की रोकथाम – Marasmus Prevention in Hindi

मरास्मस पोषण की कमी से होने वाला रोग है, अतः इसके बचाव संबंधी उपाय के तहत स्वस्थ और संतुलित आहार प्राप्त करना आवाश्यक होता है। मरास्मस की रोकथाम के लिए प्रत्येक व्यक्ति विभिन्न तरीकों को अपनाकर, इसके जोखिमों को कम करने में सहायता प्राप्त कर सकता है। मरास्मस के बचाव संबंधी उपाय में निम्न को शामिल किया जा सकता है, जैसे:

  • मरीज को उबला हुआ स्वच्छ पानी पीना चाहिए।
  • हाइड्रेटेड रहने के लिए अधिक मात्रा में पानी का सेवन करना चाहिए।
  • खाद्य पदार्थों को अच्छी तरह पकाकर खाना चाहिए।
  • स्वस्थ और संतुलित आहार का सेवन करना चाहिए।
  • माता-पिता या अभिभावक को पोषण संबंधी महत्व को समझना आवश्यक है, तथा खाद्य पदार्थों को ठीक से तैयार करने के बारे में जानना आवश्यक होता है।
  • कैलोरी, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और अन्य पोषक तत्व का अधिक मात्रा में सेवन करना चाहिए।
  • गर्भावस्था के दौरान और बच्चे के जन्म के दौरान कुपोषण को रोकने के लिए आवश्यक पोषण प्रदान करना चाहिए।
  • बच्चों को पोषण संबंधी कठिनाइयों से बचाने और प्रतिरक्षा में सुधार करने के लिए प्रत्येक माँ को बच्चे के जन्म के बाद 5 से 6 महीने तक स्तनपान कराना चाहिए।
  • बच्चों को निश्चित समय पर आवश्यक टीकाकरण कराया जाना चाहिए।
  • प्रोटीन से भरपूर खाद्य पदार्थ, जैसे: स्किम्ड दूध (skimmed milk), अंडे, मछली, नट्स इत्यादि का अधिक मात्रा मे सेवन करना चाहिये, इत्यादि।
Sourabh

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