गर्भावस्था

जानें आखिर क्या होता है एनॉमली टेस्ट – Anomaly scan in pregnancy in Hindi

Anomaly scan in Hindi एनॉमली स्कैन गर्भावस्था (pregnancy) में कराया जाता है। यह एक ऐसा स्कैन है जिसे हर महिला को कराना चाहिए। आइये जानते है एनॉमली स्कैन या अल्ट्रासाउंड लेवल II क्यों किया जाता है? एनॉमली स्कैन क्या है? क्या मुझे एनॉमली स्कैन के लिए तैयारी करनी होगी? स्कैन किस तरह किया जाता है? एनॉमली स्कैन से शिशु के बारे में क्या जानकारी मिलती है?

हालांकि एनॉमली टेस्ट कराना बहुत जरूरी नहीं होता है, इसलिए यदि आप यह स्कैन कराना नहीं चाहती हैं तो नहीं करा सकती हैं। यदि गर्भ (womb) में पल रहा बच्चा असामान्य (abnormal) है या उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं हो तो इस स्कैन के माध्यम से यह सब देखा जा सकता है। यही कारण है कि ज्यादातर महिलाएं एनॉमली टेस्ट कराना पसंद करती हैं। इसे टारगेट स्कैन ड्यूरिंग प्रेगनेंसी, लेवल 2 अल्ट्रासाउंड इन प्रेगनेंसी जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है।

विषय सूची

  1. एनॉमली स्कैन क्या है? – What is Anomaly scan in Hindi
  2. एनॉमली स्कैन कराने की प्रक्रिया – Procedure of Anomaly scan in Hindi
  3. एनॉमली स्कैन में सोनोग्राफर किन चीजों का परीक्षण करता है? – What sonographer examine in Anomaly  scan in Hindi?
  4. एनॉमली स्कैन में समस्या के संकेत मिलने पर क्या होता है? – What if there are signs of a problem on my scan?

एनॉमली स्कैन क्या है? – What is Anomaly scan in Hindi

एनॉमली स्कैन एक तरह का अल्ट्रासाउंड स्कैन है। इसे मिड प्रेगनेंसी टेस्ट या 20 सप्ताह (20-week) प्रेगनेंसी टेस्ट कहा जाता है। एनॉमली स्कैन आमतौर पर प्रेगनेंसी के 18 से 21 हफ्तों के बीच में कराया जाता है। कुछ मामलों में यह प्रेगनेंसी के 21वें हफ्ते के बाद भी कराया जा सकता है। एनॉमली स्कैन कराने से गर्भ में पल रहे बच्चे की स्थिति (health) का पता चल जाता है। इस स्कैन के माध्यम से यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि गर्भ में बच्चे का विकास सामान्य रूप से हो रहा है या नहीं।

इसके अलावा बच्चे के स्वास्थ के बारे में भी इस स्कैन से जानकारी मिल जाती है। गर्भावस्था के 20वें हफ्ते बाद एनॉमली स्कैन में बच्चे के चेहरे, हाथ, हाथ की उंगलियां, पैर और पैरों की उंगलियां, मस्तिष्क, सिर, किडनी, ब्लैडर और चेहरे के विकास को देखा जा सकता है, यही कारण है कि इसे 20-वीक स्कैन कहते हैं। इस स्कैन के माध्यम से गर्भवती महिला अपने बच्चे के शरीर को देख सकती है।

(और पढ़े – अल्ट्रासाउंड क्या है और सोनोग्राफी की जानकारी…)

एनॉमली स्कैन कराने की प्रक्रिया – Procedure of Anomaly scan in Hindi

एनॉमली स्कैन विशेषरूप से प्रशिक्षित स्टॉफ करता है जिसे सोनोग्राफर कहते हैं। यह स्कैन एक धीमी रोशनी वाले कमरे में किया जाता है ताकि बच्चे का चित्र स्पष्ट रूप से स्कैन में आ जाए। एनॉमली स्कैन करने के लिए गर्भवती महिला को एक बेड पर लेटा दिया जाता है और उसके कपड़े को पेट से ऊपर खिसका दिया जाता है ताकि पेट पूरी तरह से दिखायी दे। इसके बाद सोनोग्राफर के सहायक प्रेगनेंट महिला के पेट पर जेल रखते हैं और पेट के आसपास टिश्यू पेपर लगा देते हैं ताकि यह जेल कपड़े में न लगे। इसके बाद सोनोग्राफर हाथ से एक उपकरण (equipment) पकड़कर पेट पर रखें जेल को फैलाते हैं। यह जेल रगड़ने पर जब त्वचा के संपर्क में आता है तो अल्ट्रासाउंड स्क्रीन पर काला और सफेद (black and white) चित्र बनता है।

ध्यान रखे एनॉमली स्कैन कराते समय आमतौर पर दर्द नहीं होता है लेकिन सोनोग्राफर बच्चे का स्पष्ट इमेज (clear image) न प्राप्त होने पर पेट पर थोड़ा प्रेशर जरूर देते हैं। इसके बाद गर्भ में पल रहे बच्चे का चित्र सीधे और अलग-अलग एंगल से दिखायी देता है। एनॉमली स्कैन करने में कुल आधे घंटे का समय लगता है। यह स्कैन कराते समय बेड पर सही तरीके से न लेटने पर बच्चे का स्पष्ट चित्र प्राप्त करने में कठिनाई होती है। इसके अलावा एनॉमली स्कैन कराते समय गर्भवती महिला का ब्लैडर (bladder) भी भरा होना चाहिए।

(और पढ़े – सरोगेसी क्या है? इस तरह पाए संतान सुख…)

एनॉमली स्कैन में सोनोग्राफर किन चीजों का परीक्षण करता है? – What sonographer examine in Anomaly  scan in Hindi?

एनॉमली स्कैन के माध्यम से सोनोग्राफर (sonographer) बच्चे के शरीर के अंगों (organ) का परीक्षण करते हैं। आइये जानते हैं कि इस स्कैन के जरिए बच्चे के किन अंगों की जांच की जाती है।

  • इस स्कैन में बच्चे के सिर और मस्तिष्क की संरचना और आकार की जांच की जाती है। इस स्टेज में बच्चे के मस्तिष्क में समस्या हो सकती है, जो बहुत कम मामलों में होता है, लेकिन यदि कोई समस्या होती है तो वह इस स्कैन में दिखायी देती है।
  • बच्चे के चेहरे की जांच की जाती है कि कहीं उसके होंठ कटे (cleft lip) तो नहीं हैं।
  • शिशु के रीढ़ की हड्डियों की लंबाई के बारे में परीक्षण किया जाता है। जिससे यह पता चलता है कि त्वचा रीढ़ की हड्डी (spine) को सही से ढक रही है या नहीं।
  • बच्चे के पेट की दीवार (abdominal wall) की जांच की जाती है ताकि यह पता चल सके कि यह अंदरूनी अंगों (internal organ) को सामने से ढक रहा है या नहीं।
  • बच्चे के हृदय के बारे में यह पता लगाया जाता है कि उसके हृदय के ऊपर और नीचे के दोनों चेंबर (heart chamber) समान आकार के हैं या नहीं। इसके अलावा सोनोग्राफर बच्चे के हृदय में खून पहुंचाने वाली धमनियों (arteries) और सिरों (veins) का भी परीक्षण करता है।
  • इसके अलावा सोनोग्राफर यह भी चेक करता है कि बच्चे के शरीर में दोनों किडनी है कि नहीं एवं उसके ब्लैडर में पेशाब  की स्थिति सही है या नहीं।

(और पढ़े – गर्भाशय की जानकारी, रोग और उपचार…)

एनॉमली स्कैन में समस्या के संकेत मिलने पर क्या होता है? – What if there are signs of a problem on my scan?

  • आमतौर पर एनॉमली स्कैन में कोई गंभीर समस्या नहीं पायी जाती है लेकिन यदि बच्चे में कोई असमान्यता (abnormality) दिखती है तो 15 प्रतिशत स्कैन बार-बार किया जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि सोनोग्राफर एक बार हुए स्कैन में वह सबकुछ नहीं देख पाता है उसे जो देखने की जरूरत होती है। इसका एक कारण यह है कि गर्भ में बच्चा सही पोजिशन में नहीं लेटा होता है।
  • इसके अलावा यदि गर्भवती महिला के शरीर का वजन ज्यादा है तो कोई समस्या होने पर प्रेगनेंसी के 23वें हफ्तें में दोबारा एनॉमली स्कैन किया जाता है।
  • स्कैन में यदि सोनोग्राफर कोई समस्या देखता है तो वह प्रेगनेंट महिला को सीधे बता देता है। इसके बाद डॉक्टर उसे भ्रूण से संबंधित कुछ दवाएं (fetal medicine) देते हैं और तीन से पांच दिनों के अंदर दोबारा से स्कैन किया जाता है।
  • यदि बच्चे के हृदय में कोई समस्या मिलती है तो गर्भवती महिला को फेटल इको टेस्ट (fetal echo test) कराना पड़ता है। इस टेस्ट के माध्यम से बच्चे के हृदय में समस्या का विस्तार से पता लगाया जाता है।
  • यदि बच्चे के शरीर में कोई गंभीर असामान्यता दिखायी देती है तो डॉक्टर गर्भवती महिला को सही जानकारी देकर उसकी मदद करते हैं। हालांकि ज्यादातर मामलों में कोई गंभीर समस्या नहीं दिखायी देती है।
  • इसके अलावा अन्य प्रकार की गंभीर समस्या होने पर गर्भ में ही बच्चे की सर्जरी की जाती है या जन्म देने के बाद सर्जरी या इलाज के माध्यम से समस्या का इलाज किया जाता है।

(और पढ़े – टेस्ट ट्यूब बेबी की प्रक्रिया, विधि, सफलता और नुकसान…)

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